साँस में छुपी 25 प्रकार की ऊर्जा: भीतर की दिव्य शक्ति को जागृत करना
साँस लेना केवल जीवित रहने की एक यांत्रिक क्रिया नहीं है, यह शरीर, मन और आत्मा को आपस में जोड़ने वाला वह पवित्र धागा है जो हमें सम्पूर्णता में जीने की कला सिखाता है। योग, आयुर्वेद और गूढ़ परंपराओं में साँस को प्राण कहा गया है, यह ब्रह्मांडीय जीवन शक्ति का वाहन है।
हर श्वास में केवल ऑक्सीजन ही नहीं, बल्कि सूक्ष्म ऊर्जाओं का एक पूरा संसार प्रवाहित होता है जो हमारे जीवन, भावनाओं, मानसिक स्पष्टता और आध्यात्मिक विकास को गहराई से प्रभावित करता है।
जब आप इन 25 प्रकार की साँस की ऊर्जा को समझते हैं और जागरूकता से साधते हैं, तो आपके भीतर छुपे चेतना के अनेक स्तर खुलने लगते हैं। ये ऊर्जाएँ जब संतुलित होती हैं, तो भीतर ही भीतर उपचार, दिव्य रचनात्मकता और आत्मज्ञान को प्रकट करती हैं।
“साँस आत्मा की फुसफुसाहट है। जब आप गहराई से सुनते हैं, तो विचारों से परे सत्य सुनाई देता है।” ~ आदर्श सिंह
1. प्राण
कार्य: जीवन शक्ति, श्वसन, मानसिक स्पष्टता
स्थान: ह्रदय, फेफड़े, छाती
साधना: नाड़ी शोधन, सजग श्वास
प्राण वह मूल जीवन शक्ति है जो हमारे शरीर को ऊर्जावान बनाती है और चेतना को जीवित रखती है। यह ह्रदय की धड़कन, मस्तिष्क और कोशिकाओं को शक्ति देती है। जब प्राण बाधाहीन बहता है, तो आप जीवंत, सजग और आनंदित रहते हैं।
“जिस साँस को आप अनदेखा करते हैं, वही जीवन है जो आप खोते हैं। सजग होकर साँस लें, ताकि उद्देश्यपूर्ण जी सकें।” ~ आदर्श सिंह
2. अपान
कार्य: मलोत्सर्ग, स्थिरता, विषहरण
स्थान: निचला पेट, पेल्विक फ्लोर
साधना: गहरी पेल्विक साँस, मूलबंध
अपान सभी नीचे की ओर बहने वाली ऊर्जाओं को संचालित करता है जैसे मलत्याग, मासिक धर्म आदि। यह शारीरिक व मानसिक स्थिरता लाता है और छोड़ने में सहायता करता है।
3. समान
कार्य: पाचन, आत्मसात, आंतरिक संतुलन
स्थान: नाभि क्षेत्र
साधना: कपालभाति, अग्निसार
समान ऊर्जा अंदर और बाहर की गति को संतुलित करती है, जिससे पाचन, रोग प्रतिरोधक क्षमता और दिमाग के दोनों गोलार्धों में सामंजस्य आता है।
4. उदान
कार्य: वाणी, ऊपर उठाव, आध्यात्मिक आरोहण
स्थान: गला व सिर
साधना: उज्जायी, ओम् का जाप
उदान आत्म-अभिव्यक्ति और सच्चाई बोलने की क्षमता देता है। यह ऊर्जा ऊपर की ओर ले जाती है और lucid dreaming तथा गहन विचार शक्ति को बढ़ाती है।
5. व्यान
कार्य: संचार, समन्वय, पूरे शरीर में ऊर्जा
स्थान: सम्पूर्ण शरीर
साधना: पूरे शरीर की साँस की सजगता
व्यान सुनिश्चित करता है कि प्राण हर कोशिका तक पहुँचे। यह ऊर्जा आपके चारों ओर के क्षेत्र (आभामंडल) को भी पोषित करती है।
“जब साँस पूरे शरीर की सजगता बन जाती है, तब आत्मा असीम हो जाती है।” ~ आदर्श सिंह
6. सुषुम्ना ऊर्जा
कार्य: आध्यात्मिक जागरण
स्थान: मेरुदंड का केंद्रीय नाड़ी
साधना: मेरुदंडीय श्वसन, ध्यान
सुषुम्ना वह नाड़ी है जिससे कुण्डलिनी ऊपर उठती है। सभी चक्रों को जोड़कर उच्च चेतना के द्वार खोलती है।
7. इड़ा ऊर्जा
कार्य: शीतलता, शांति, अंतर्मुखता
स्थान: बाईं नासिका
साधना: चंद्र भेदन
इड़ा नाड़ी चंद्रमा से जुड़ी है, जो शीतल, पोषणकारी और स्त्रैण ऊर्जा है। इसे सक्रिय करना तनाव कम करता है और अंतर्ज्ञान बढ़ाता है।
8. पिंगला ऊर्जा
कार्य: गर्मी, कर्म, सक्रियता
स्थान: दाईं नासिका
साधना: सूर्य भेदन
पिंगला सूर्य और पुरुषत्व की ऊर्जा है। यह शरीर को ऊर्जावान बनाती है और फोकस, उत्साह देती है।
9. कुण्डलिनी ऊर्जा
कार्य: सुप्त दिव्य शक्ति
स्थान: मेरुदंड का आधार
साधना: नाड़ी शोधन, मंत्र
कुण्डलिनी वह सर्पाकार शक्ति है जो जागने पर आत्म-साक्षात्कार तक ले जाती है।
“साँस वह पुल है जो आपके मानवीय सामर्थ्य को आपकी दिव्यता की संभावना से जोड़ता है।” ~ आदर्श सिंह
10. ओजस ऊर्जा
कार्य: रोग प्रतिरोधक क्षमता, चमक, बल
स्थान: सम्पूर्ण शरीर
साधना: धीमी गहरी साँसें, कृतज्ञता ध्यान
ओजस स्वास्थ्य और आभा की मूलभूत शक्ति है। यह चेहरे पर चमक लाता है और दिल को मजबूत करता है।
11. तेजस ऊर्जा
कार्य: विवेक, आंतरिक अग्नि, स्पष्टता
स्थान: मन व नाभि
साधना: भस्त्रिका, त्राटक
तेजस ज्ञान व संकल्प की अग्नि है। यह भ्रम को जलाकर दूर करता है और गहन दृष्टि देता है।
12. नाड़ियों की ऊर्जा
कार्य: प्राण के प्रवाह के मार्ग
स्थान: सूक्ष्म शरीर
साधना: नाड़ी शोधन
72,000 नाड़ियाँ प्राण को शरीर में पहुँचाती हैं। श्वास के माध्यम से ये स्वच्छ होती हैं और मानसिक स्पष्टता आती है।
13. चक्र ऊर्जा
कार्य: केंद्रित शक्ति
स्थान: मेरुदंड
साधना: चक्र श्वास, दृश्यकरण
हर चक्र विशेष साँस ऊर्जा का केंद्र है। जैसे ह्रदय श्वास अनाहत को खोलती है और पेट की श्वास मणिपुर को सशक्त करती है।
14. ब्राह्मण ऊर्जा
कार्य: विस्तार, ऊपर उठना
स्थान: सम्पूर्ण प्रणाली
साधना: श्वास के अंतःप्रेरण पर केंद्रित
यह आनंद, उत्सव और प्रार्थना की साँस है।
15. लंघन ऊर्जा
कार्य: विषहरण, शांत
स्थान: तंत्रिका तंत्र
साधना: श्वास-प्रश्वास पर अधिक ध्यान
यह मन को शांत करती है, चिंताओं को कम करती है।
16. सूर्य ऊर्जा
कार्य: उत्तेजना, विकास
स्थान: सौरमणि (सोलर प्लेक्सस)
साधना: सूर्य नमस्कार, सुबह की साँस
यह आत्मविश्वास व स्पष्टता लाती है।
17. चंद्र ऊर्जा
कार्य: ठंडक, उपचार
स्थान: सिर व स्वाधिष्ठान
साधना: चंद्र ध्यान, बाईं नासिका
यह स्त्रैणता और भावनात्मक उपचार को गहराई देती है।
18. शक्ति ऊर्जा
कार्य: दिव्य स्त्रैणता, रचनात्मकता
स्थान: स्वाधिष्ठान व ह्रदय
साधना: वृत्ताकार साँस, नृत्य
जब श्वास लयबद्ध होती है, शक्ति ऊर्जा नए विचार व भाव जगाती है।
19. ध्यान ऊर्जा
कार्य: ध्यान, मौन
स्थान: आज्ञा चक्र
साधना: केवल श्वास देखना
यह स्वतः शांति व सम्पूर्ण चेतना में ले जाती है।
20. मंत्र ऊर्जा
कार्य: ध्वनि, तरंग, संकल्प
स्थान: गला व ह्रदय
साधना: सो-हम, ओम्
यह आपके विचारों को दिव्यता की ओर ले जाती है।
21. अनाहत ऊर्जा
कार्य: प्रेम, करुणा
स्थान: ह्रदय
साधना: ह्रदय समन्वय श्वास
“प्रेम की साँस दुनिया के शब्दों से भी गहरा उपचार देती है।” ~ आदर्श सिंह
22. तमस ऊर्जा
कार्य: स्थिरता, जड़ता
स्थान: निचला शरीर
साधना: भारी श्वास
सोने या गहन ध्यान में उपयोगी, मगर सजीवता के लिए संतुलन जरूरी।
23. रजस ऊर्जा
कार्य: कार्य, परिवर्तन
स्थान: ऊपरी पेट
साधना: तीव्र प्राणायाम
यह गति, अभिलाषा व बदलाव की ऊर्जा है।
24. सत्त्व ऊर्जा
कार्य: पवित्रता, संतुलन, आनंद
स्थान: सम्पूर्ण सूक्ष्म शरीर
साधना: संतुलित श्वास, प्रकृति में रहना
यह शांति, नैतिक स्पष्टता और आध्यात्मिक प्रसन्नता देती है।
25. ब्रह्मांडीय ऊर्जा
कार्य: ब्रह्मांड से एकत्व
स्थान: सहस्रार, आभामंडल
साधना: मौन में आकाश को देखना
जब श्वास सूक्ष्म हो जाती है, तब आप तारों, अंतरिक्ष और सम्पूर्ण सृष्टि से एक हो जाते हैं।
“सजगता के साथ साँस लेना ही शक्ति के साथ जीना है। हर श्वास ऊर्जा आपके भीतर के किसी नए आयाम का द्वार खोलती है, जीवन रक्षा से लेकर आत्म-प्रकाश तक।”
“साँस मूल गुरु है; उसे सुनिए, वह आपको आपके उच्चतम स्वरूप से परिचित कराएगी।” ~ आदर्श सिंह
Wed Jul 2, 2025