भारतीय संस्कृति में समाजवाद : जहाँ सेवा है, वहाँ समाजवाद है

राज्यसभा सांसद और विद्वान् डॉ. सुधांशु त्रिवेदी जी के वक्तव्य पर आधारित

समाजवाद को जानना है, तो भारत को देखिए

आज जब दुनिया में समाजवाद को लेकर लंबी-चौड़ी बहसें होती हैं : कोई उसे आर्थिक मॉडल बताता है, कोई राजनैतिक विचारधारा, कोई सत्ता प्राप्ति का साधन, तब हमें एक बार ठहरकर अपने भारत को देखना चाहिए।

यहाँ समाजवाद कोई चुनावी नारा नहीं है, कोई पार्टी का घोषणापत्र नहीं है।
यहाँ समाजवाद तो हमारी संस्कृति की आत्मा में रचा-बसा है।

हज़ारों सालों से हमारे मंदिरों में भंडारे, और सैकड़ों वर्षों से गुरुद्वारों में लंगर चलते आ रहे हैं।
यहाँ अमीर-गरीब, जाति-भेद, ऊँच-नीच, कुछ नहीं देखा जाता।
हर कोई उसी पंक्ति में बैठकर भोजन करता है।

“जहाँ भोजन में भेद नहीं, वही असली समाजवाद पनपता है।” ~ आदर्श सिंह

यह कोई एक दिन या पर्व तक सीमित नहीं है।
भारत में तो 365 दिन मुफ्त भोजन की यह व्यवस्था किसी न किसी धार्मिक स्थल में सहज रूप से चलती रहती है।
विश्व के किसी अन्य देश, किसी अन्य संस्कृति में यह दृश्य नहीं दिखेगा, जहाँ इतने लंबे समय से, इतनी स्वाभाविकता से, बिना किसी सरकारी योजना के, मुफ्त भोजन का आयोजन होता रहा हो।

हर्षवर्धन का त्याग : सनातन समाजवाद का अमर उदाहरण

हमारे इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जहाँ राजाओं ने भी समाज के लिए अपने सर्वस्व का दान कर दिया।
मगर सबसे अद्भुत प्रसंग है : प्रयाग के महादान का, जब सम्राट हर्षवर्धन ने अपने सारे आभूषण, कीमती वस्त्र तक दान कर दिए।
वह केवल एक साधारण धोती लपेटकर वहाँ से लौटे।

यह वही समाजवाद था जो हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति से प्रकट होता है।
यह आत्मा से उपजा समाजवाद था, कोई राजनैतिक संकल्पना नहीं।

“समाज की सेवा जब दिल से हो, तब सत्ता के नारे बेमानी हो जाते हैं।” ~ आदर्श सिंह

लोहिया जी की कसौटी : संतति और संपत्ति से दूर रहो

डॉ. राममनोहर लोहिया जी, जिन्होंने भारतीय समाजवाद को नैतिकता की कसौटी पर कसा, कहते थे ~

“समाजवादी नेताओं को दो चीज़ों से दूर रहना चाहिए : संतति और संपत्ति। यानी न परिवारवाद में उलझें, न धन संचय में।”

आज इस विचार को देखिए, और आज के उन नेताओं पर भी नज़र डालिए जो स्वयं को समाजवाद का सबसे बड़ा ठेकेदार बताते हैं।

“जब विचारधारा की जगह वंशवाद और दौलत ले ले, तब समाजवाद एक खोखला शब्द बन जाता है।” ~ आदर्श सिंह

आज के स्वघोषित समाजवादी : सत्ता का समाजवाद

आइए ज़रा उन नेताओं की जीवनशैली पर दृष्टि डालें, जो बड़े-बड़े मंचों पर चिल्लाते हैं ~
“समृद्धि का वितरण असामान्य है, कुछ के पास बहुत संपत्ति है, कुछ के पास नहीं।”

जरा उनके परिवारों की पिछली एक पीढ़ी में हुई संपत्ति की चढ़ाई देखिए!

मुलायम सिंह यादव जी, जिनके बारे में कहा जाता है कि एक समय वह साइकिल पर चलते थे, उनका परिवार आज सैफई में जेट प्लेन से उतरता है।

लालू प्रसाद यादव जी, जो स्वयं को गरीबों का मसीहा कहते नहीं थकते, उनका परिवार आज बिहार का सबसे बड़ा ज़मींदार बन चुका है। कहते हैं, गाँव-गाँव की ज़मीन हड़प-हड़प कर वे खुद को गरीबों का प्रतिनिधि बताते हैं।

और फिर नेहरू-गांधी परिवार, जिनके यहाँ तीन पीढ़ियों से कोई काम-धंधा नहीं हुआ,
फिर भी महीनों विदेश में रहकर लौटते हैं, और कहते हैं ~ “हम बिहार के गरीब की लड़ाई लड़ने आए हैं।”

“जो लोग हर तीसरे महीने विदेश जाकर लौटते हैं, वे गाँव के भूखे को कभी नहीं समझ सकते।” ~ आदर्श सिंह

भारतीय संस्कृति ही असली समाजवाद है

असल में समाजवाद कोई सरकार की योजना नहीं है।
यह तो भारत की संस्कृति की धमनियों में बहने वाला रक्त है।
यहाँ दान, सेवा, परमार्थ : सब स्वभाव से होते हैं।
मंदिरों में भंडारे हों या गुरुद्वारों में लंगर : यह कोई सरकारी समाजवाद नहीं, यह सनातन समाजवाद है, जो आत्मा को तृप्त करता है।

“जहाँ स्वार्थ शून्य हो, वही सच्चा समाजवाद है। बाकी सब राजनीति की दुकानें हैं।” ~ आदर्श सिंह

तो जब अगली बार कोई मंच से आपको समाजवाद के लंबे भाषण दे, तो उनसे विनम्रता से पूछिए ~
“आपने अपने घर में कितने गरीबों को रोज़ भोजन कराया है?”

और स्वयं अपने भीतर वह भावना जगाइए, जिससे हमारे पूर्वजों ने बिना किसी प्रचार, बिना किसी प्रचारक के, सच्चे समाजवाद की जीवित परंपरा बनाई है।

“समाजवाद भाषण से नहीं, थाली से आता है, जहाँ हर भूखे को सम्मान से भोजन मिले।” ~ आदर्श सिंह

Wed Jul 2, 2025

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आदर्श सिंह

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Founder of iSOUL ~ Ideal School of Ultimate Life
Adarsh Singh empowers individuals to live purposefully by integrating timeless wisdom with practical tools. With 18+ years in finance and a deep connection to spirituality, his teachings blend Money, Mind, Matter(Body) and Meaning to help people create a truly fulfilling life.